Tuesday 7 July 2020

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ

Meine alleinstehenden Freundinnen - helga schubert vom aufstehen

Meine alleinstehenden Freundinnen - Helga Schubert

(जर्मन लेखक हेल्गा शुबर्ट द्वारा लिखी गई एक कहानी, जिसे हाल ही में जर्मन के लिए बैचमैन साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है; हेल्गा शूबर्ट की रचनाओं का आज तक उर्दू में अनुवाद नहीं किया गया है और यह उनकी पहली कहानी है जिसका सीधे जर्मन से उर्दू में अनुवाद किया गया है और अब अनुवाद किया जा रहा है। उर्दू से हिंदी में।)


मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों से कोई पहले से बताए बिना भी मिलने के लिए जा सकता है। अक्सर पहले ही कोई ना कोई वहां होता है। उनके हाँ तो कोई भी अपने साथ किसी को ला भी सकता है। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ ख़ुद कभी भी पहले से बताए बग़ैर नहीं आतीं, कुछ नहीं तो वो आने से पहले गली के मोड़ से फ़ोन कर देती हैं। उनकी अच्छा होती है कि वो जिसे मिलने जा रही हैं, वो अकेला हो। वो कभी भी अपने साथ किसी को नहीं लातें।


मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ पुराने तरीक़े की बिल्डिंग में अपने फ़्लैटों में रहती हैं, या तो चौथी मंज़िल पर या फिर किसी दुकान में ग्रांऊड फ़्लोर पर। वो कहती हैं कि वो हर मंगल के दिन जा कर इस नगर पालीका के सामने नहीं बैठना चाहतें, जो आवासी सूओदीहाओं की उपलब्धी का ज़िम्मेदार है। लेकिन असल में वो किसी ऐसे फ़्लैट में नहीं रहना चाहतें, जो किसी नवनिर्मित इमारत में हो। उनके फ़्लैटों की ख़ास बात ये है कि उनके बारे में किसी को कोई धोका नहीं हो सकता।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों को अपने बहुत ख़ास होने पर गर्व  है। सबसे ज़्यादा इस बात पर कि उनके घरों के दरवाज़ों पर लगी हुई नामों की इन छोटी छोटी तख़्तीयों पर उन्होंने ख़ुद अपने हाथ से रंग किया हुआ होता है, जिनका इन देखा नहीं किया जा सकता। नाम की तख़्ती के साथ ही एक छोटी सी कापी लटक रही होती है और इस के साथ ही धागे से बंधी एक कच्ची पैंसिल भी। ये उन लोगों के लिए होती हैं, जो आए तो थे मगर नाकाम रहे।

घरों के अंदर राह दारीयों में सुर्ख़ ग़ालीचे बिछे होते हैं। राह दारीयों की दीवारों पर ड्राइंगज़, इश्तिहारात और किसी फ़ाख़ता के लक्कड़ी के बने घर वाले छोटे छोटे घड़ियाल लटक रहे होते हैं। एक के घर में तो राहदारी के अंत पर पूरी बारह भागों वाली कोष फ़र्श पर ही पड़ी हुई है।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों के घरों में शौचालय भी ख़ास होते हैं, अगर वो उन्हें उनके अन्य उपेवग करता की पसंद के अनूओसार बनाने पर मजबूर ना हूँ तो। एक के घर में तो शौचालय तह-ख़ाने में है, विशेष सुरक्शा के लिए लगाए गए दो तालों के पीछे, और इस के सामने और ऊपर मोमी कपड़ा लटका हुआ है। वहां बैठे हुए ऐसे लगता है जैसे सर पर मोमी कपड़े का आसमान तना हुआ हो। एक दूसरी सहेली के घर में तो शौचालय तक पहुंचने के लिए पहले सीधा और फिर दाएं तरफ़ मुड़ना पड़ता है। फिर इन्सान अपनी मंज़िल तक पहुंचता है, जो एक छोटे से चबूतरे पर बनी होती है। वहां से दीवार पर लगाई गई वो तस्वीरें नज़र आती हैं, जो औरतों की जाँघ तक आने वाली लंबी, रेशमी लेकिन बहुत बारीक जुराबों के पैकेटों से काटी गई होती हैं। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली एक तीसरी दोस्त के घर में तो पहले शौचालय के दरवाज़े के सामने खड़ी की गई बाईस्कल को पहले खींच कर रसोई में चूल्हे के क़रीब तक पहुंचाना पड़ता है। इस तरह ये बात हमेशा पता चल जाती है कि शौचालय ख़ाली है या अंदर कोई है।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों के रसोई घर उनके नाश्ता करने और कपड़े धोने के कमरे भी होते हैं। रसोई घर की दीवारें भिन्न भिन्न खाने पकाने की विधि और छोटी छोटी ढेरियों की सूरत में रखे गए प्याज़ की रंगीन तस्वीरों से सजी होती हैं और इन्ही दीवारों पर ऐसी चौकोर अलमारीयां भी लटकी होती हैं जिनमें प्याज़ के डिज़ाइन वाले चीनी मिट्टी के बर्तन रखे होते हैं। बावर्ची ख़ानों की मेज़ों के नीले रंग के मेज़पोशों पर मुख़्तलिफ़ डिज़ाइन बने होते हैं। अलमारीयां और कुर्सियाँ ऐसी जिन पर सुर्ख़ या सफ़ैद रंग भी ख़ुद ही किया गया हो। पास ही उन्होंने बिजली से चलने वाली कोई ना कोई छोटी सी केतली भी ख़रीद कर रखी होती है और कोई ऐसा तीन हिस्सों वाला दर्पण भी जिसमें ख़ुद को देखा जा सके।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों के ड्राइंग रुम की ख़ास बात वहां रखे बड़े बड़े तख़्त होते हैं। इन पर मख़मल की चादरें बिछी होती हैं और रेशमी कम्बल और नरम तकिए रखे हुए होते हैं। पास ही शीशे के दरवाज़ों वाली ऐसी नुमाइशी अलमारीयां रखी होती हैं, जिनमें दादियों और नानीयों की छोड़ी हुई कई चीज़ें रखी होती हैं। टेलीविज़न सीट किताबों के दरमयान ऐसे रखा होता है जैसे छिपा दिया गया हो और वो आसानी से उन देखा हो जाता है। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ छत से फ़र्श तक लटकने वाले पर्दे पसंद नहीं करतीं। रोशनी का काम वो लैम्प देते हैं जो आर्कीटेक्टस काम करते हुए इस्तिमाल करते हैं और जो इन ड्राइंगरूम में दीवारों पर लगे होते हैं। दीवारों पर सफ़ैद रंग किया हुआ होता है और वो तस्वीरों से भरी होती हैं, ताकि उन पर हर बार कुछ ही देर बाद सफ़ेदी करवाना मजबूरी ना बन जाये। ये तस्वीरें या तो किसी के साथ अदला बदली कर के ली गई होती हैं या फिर बड़ी उदारता का प्रदर्शन कर के ख़रीदी गई। कभी कभी ये तस्वीरें ख़ुद बनाई गई पेंटिंगज़ भी होती हैं। एक दीवार पर एक पवित्र प्रतीमा के चित्र भी लटकी होती है, यानी अगर वो (इश्वर)  वास्तव में हुआ तो।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ बाल कटवाने किसी नाई के पास नहीं जातीं, लेकिन उन्होंने अपने पास छुपा कर ऐसी वस्त्ववें रखी होती हैं जिनसे बाल लच्छेदार बनाए जा सकते हैं। वो आपस में ही एक दूसरे के बाल काट देती हैं। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों को इस से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि उन्होंने पहना किया हुआ है। उनकी किसी रेशम जैसी पतलून का भूरा रंग स्वेटर से मिलता हो, ऐसा कभी हो भी तो सौभाग्य ही होता है। वो कहती हैं कि वो अपनी आँखों की ख़ूबसूरती के लिए काफ़ी ज़्यादा रक़म ख़र्च करती हैं। आँखों की पुतलीयों पर लगाने के लिए पाउडर, आई शैड, आई लाइनर, इन सब के इस्तिमाल के लिए छोटे छोटे बारीक से बरशश और पलकों पर लगाने के लिए इस मस़्का रे पर जो चुमने या आँसूओं से ख़राब ना हो। अगर वो पहले से अपने लिए कुछ ना भी करती रही हूँ तो भी कम अज़ कम, कुछ थोड़ा बहुत तो उन्हें अपने लिए करना ही पड़ता है।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ, अगर वो बेऔलाद ना हूँ तो, उनमें से हर एक का एक बच्चा तो होता है। इन बच्चों को अन्य बच्चों की तरह ना तो बार-बार अपने कमरे की सफ़ाई करना पड़ती है और ना ही रात को बहुत जल्द सोने के लिए बिस्तर की तरफ़ जाना पड़ता है। वो भी अपनी माओं की तरह नाई की दुकान पर नहीं जाते। बच्चे हमेशा साथ ही होते हैं। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ अपने बच्चों का लालन पालन बना तानाशाही करना चाहती हैं। लेकिन शुरू में बच्चे इस तरह के लालन पालन के लिए मेरी सहेलीयों के शुक्रगुज़ार नहीं होते। ये बच्चे भी अपने बापों की तरह के होते हैं। यही बात मसला भी है।

इन बच्चों की माओं के उनके बापों के साथ रास्ते अच्छे तरीक़े से अलग हो गए थे। वो यही कहती हैं। लेकिन अधि कांश मामलों में मर्द उनके साथ ही रहना चाहते थे, मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ ये बात ज़ोर देकर बताती हैं। उनके साथ रहने के लिए तो ये मर्द अविवाहित होने पर आज भी खड़े खड़े उनसे शादियां कर लेते, उनमें से हर अविवाहित मर्द की पहली शादी या पहले एक-बार शादी कर चुके मर्दों की दूसरी, अगर वो आज विवाहित ना हुए तो।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों की राय में इन्सान को ज़िंदगी में कम अज़ कम एक-बार तो विवाहित रह चुका होना चाहिए। जब कोई मर्द उनका दोस्त नहीं होता, तो वो कहती हैं कि वो अपने फ़्लैट पर किसी मर्द की हर-रोज़ मौजूदगी को तो किसी भी सूरत बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। जब कोई मर्द उनका दोस्त बन जाता है, तो वो उनके साथ ही रहता है, लेकिन नगर निगम के अधीकारी को नियमित तौर पर सूओचना दिए बना। मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों को इतनी आज़ादी की ज़रूरत तो होती ही है।

जब मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों का कोई ब्वॉय फ्रैंड होता है, तो वो उदास होती हैं। क्योंकि उन्हें इस से मुहब्बत जो होती है, चाहे ये सुनने में जैसा भी लगे। इसलिए कि मुहब्बत बहुत थका भी तो देती है। ये बस बिलकुल आख़िरी कोशिश होगी, ये कहते हुए वो उस के साथ ही रहती हैं। ज़िंदगी में इस के आने का इंतिज़ार करने का नतीजा तो अच्छा ही रहा है। वो ये सब उम्मीदें लगाए रहती हैं। हर बार। वो सारी ही। उनके दोस्तों को अगरचे इन उम्मीदों का एहसास भी होता है, और उन औरतों की तरफ़ से इस रिश्ते में बर्दाश्त की जाने वाली थकन का तो और भी ज़्यादा, लेकिन वो फिर भी विश्वस खो बैठते हैं।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ ख़ुद को ख़ूबसूरत नहीं समझतीं। इस बात की भरपाई के लिए वो बहुत दियालूओ और दया वान होती हैं, उतनी ही दियालूओ जितनी वो ख़ुद को ख़ूबसूरत समझती होतीं तो होतीं। उनके दियालूओ पन का ये पहलू किसी को भी नज़र नहीं आता, उनके दोस्तों तक को भी नहीं। या फिर उनके दोस्त बिल्कुल इसी कारन से उनके व्यावहार के ठीक होने पर विश्वास नहीं रखते।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ गर्भ निरोदक गोलीयां भी लेती हैं। लेकिन ये बात वो बिल्कुल शुरू में तो अपने नए दोस्तों को भी नहीं बतातीं। इसलिए कि फिर वो अपने हिस्से के बारे में सोचने लगते हैं। अपने हिस्सों के बारे में तो वो उस वक़्त भी बहुत सोचते हैं जब वो किसी हाथ लगी किताब के आरोपण पढ़ते हैं। लेकिन ये सब कुछ तो वक़्त के साथ साथ जमा होता ही रहता है।

अपनी ज़िंदगी के किसी नए युग की शुरूवात पर मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ कभी कभी एक बिदाई बैठक भी कर लेती हैं। ये कहते हुए कि अगली बार वो ना तो मिलने सकेंगी और ना ही शायद फ़ोन कर सकेंगी। बाद में वो फिर अपना टेलीफ़ोन कुनैक्शन भी कटवा देती हैं और राहदारी में अपने घर के दरवाज़े पर लटका हुआ राईटिंग पेड भी उतार देती हैं। इसलिए कि वो उनके दोस्त के लिए तकलीफ़ का बाइस हो सकते हैं।

ज़िंदगी में आगे बढ़ने के बीच मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ अपने दोस्तों के बारे में छोटी सी बिदाई का अनुमान भी लगा लेती हैं। अब वो अंत में अपनी ज़िंदगी में एक नॉर्मल इन्सान बन गया है, इसलिए अब वो दूसरे मर्दों की इस के बारे में कही गई नकारात्मक बातों को ठीक और समझ में आने पर मजबूर नहीं होंगी। उसने अपनी ज़िंदगी सही करम के साथ गुज़ारी है। पहले अपने रोज़गार के लिए और अब एक औरत के लिए, जिसके बारे में भगवान का शुक्र है कि वो जानता है कि उसे इस औरत को कैसे हासिल करना है। वो चौड़े और भरे हुए शरीर वाला एक ऐसा एडोनिस Adonis) है, जो बहुत ज़्यादा सोचता नहीं है। या फिर वो कोई ऐसा आदमी है, जिसने ख़ुद को प्रदर्शन के जुनून और गाड़ीयों की उत्साह की लालसा नहीं बना रखा, बल्कि वो तो एक ऐसी संवेदनशीलता और सोच बिचार करने वाला इन्सान है, जो अपनी दोस्त को समझता है और उसे देखते ही तुरंत बिस्तर के बारे में नहीं सोचने लगता। वो शादी को इन्सानों के इकट्ठे रहने की कोई नई शक्ल नहीं समझता। लेकिन साथ ही वो ऐसे इन्सानों के यक़ीन को भी ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, जो शादी जैसे बंधन में अपने लिए सुरक्शा और सम्बंदा की अच्छा रखते हैं। इसलिए ऐसा मर्द तलाक़ भी नहीं देता, जो मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों को समझ भी आता है, कम अज़ कम थोड़े समय के लिए।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों का खान भी वैसा ही होता है, जैसे वो अपने बच्चे को खिलाती हैं। उनका काम उन्हें मज़ा देता है। वो मेहनती होती हैं। उनका काम उनके लिए अहम होता है, क्योंकि ये काम उनकी अपनी आपसे बाहर एक ही वयस़्तता होती है, मर्दों के बाद। एक ही तरह की दो वेस्तताओं के बीच का अंतर। इसी लिए वो अपने काम में प्रशंसा और आलोचना दोनों तरह के गढ़ों में गिर भी जाती हैं।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ अपने निकोकता के साथ कोई सम्बंध नहीं बनातीं। वो अपनी वस्तुताओं को ऐसे किसी काम के लिए ग़लत इस्तिमाल नहीं करतीं।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलियाँ छुट्टीयों में दूर की मंज़िलों के सफ़र करती हैं। वो बड़ी जिग्यासूओ होती हैं और हमेशा किसी नई मंज़िल का सफ़र करती हैं। लेकिन वो लिफ़्ट लेकर किसी के साथ गाड़ी में सिर्फ उस वक़्त--सफ़र करती हैं, जब उनके साथ कोई और भी हो। खासतौर पर रात के वक़्त तो अकेले लिफ़्ट लेकर किसी के साथ गाड़ी में नहीं बैठना चाहिए, इसलिए कि तब कुछ भी हो सकता है। एक-बार तो वो लिफ़्ट लेकर बिलकुल ही अलग दिशा में बहुत दूर तक का सफ़र कर बैठी थीं। केवल इसलिए कि एक माल वाहग गाड़ी के ड्राईवर ने उन्हें कहा था कि वो पोलैंड के पूओरवी समुद्र से जड़े तटीए क्षेत्र की तरफ़ नहीं जा रहा बल्कि कहीं और वहां तो प्रकृत सुंदरता उस के विपरीत कहीं ज़्यादा है जहां वो नहीं जा रहा।

वो दुनिया को इसी तरह जान पाती हैं।

मेरी अकेले ज़िंदगी गुज़ारने वाली सहेलीयों से कोई भी कोई आवेदन भी कर सकता है। वो किसी दूसरे की बात भी तवज्जा से सुनती हैं और उसे कोई किताब उधार भी दे सकती हैं, मतलब ये कि उनसे जैसी भी कोई आवेदन करे। अगर उनके पास रक़म होती, तो वो वो भी दे देतीं।

(र्मन से उर्दू अनूवाद मक़बूल मलिक)

(उर्दू से हिन्दी अनूवाद मुहम्मद ज़ुबैर)


No comments:

Post a Comment