Wednesday 15 July 2020

मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | 1 میری پڑھائی کی شروعات





जब पढ़ाई लिखाई शुरू नहीं हुई थी  तब बच्चे सारा दिन किया करते थेइस बात का जवाब मुझे तब ही मिल गया था जब घर वालों ने मुझे स्कूल भेजने की तैयारी शुरू कर दी। मतलब खेल क़ूऊद कम और पढ़ाई ज़्यादा

अपनी कहानी शुरू करने से पहले ये बता दूओं कि मुझसे पहले घर में स्कूल जाने वाला  आख़िरी बच्चा मेरे चचा थे। इन की पढ़ाई मेरे स्कूल जाने से दस  साल पहले पूरी हो चुकी थी।चचा की पढ़ाई पूरी होने के बाद घर में क़ुरआन--मजीद के इलावा पढ़ने के लिए कोई किताब नहीं थी। हाँ उस के इलावा अगर कोई चीज़ पढ़ी, बल्कि देखी जाती थी तो वो बिजली, पानी के बिलज़ थे जो बरामदे में लटकी तार में बड़े अच्छे तरीक़े से प्रिवी जाते थे। इन  बिलों की गिनती तो मालूम नहीं लेकिन वज़न दो किलो के क़रीब ज़रूर था। मेरे मैट्रिक करने तक यह वज़न छः किलो तो रहा होगा। इन की रंगत भी ख़ूओब थी तार के ऊपर वाले बिलज़ सफ़ैद थे लेकिन नीचे पहुंचते पहुंचते यह ख़ाकी हो चुके थे।

जब में क़रीब क़रीब छः साल का  था।  घर में मेरे स्कूल जाने के बारे में बातें होने लगीं।क़रीब के दो तीन स्कूल्ज़ के बारे में मेरी अम्मी ने हमारी पड़ोसन जो कि मेरी पहली उस्तानी बनी उन से बात की। उन्हों ने कहा कि दीदी पहले इसे पढ़ने के लिए मेरे पास भेज दें ताकि स्कूल दाख़िल होने तक इसे कुछ समझ जाये। इन दोनों महान महिलाओं की ये बैठक इस मुद्दे पर ख़त्म हुई कि मुझे अगले कुछ दिन के बाद दीदी के घर पढ़ने जाना होगा। मैं इस कार्रवाही से बिलकुल बे-ख़बर अपने हमजोलियों के साथ अपनी छोटी सी दुनिया की विशालता में गुम था। 

 एक दिन  अम्मी सुलाई मशीन रखे, हाथ में क़ैंची लिए चीनी की ख़ाली बोरी काट रही थीं। मुझे क्या पता था कि बोरी का टुकड़ा अगले दिन मेरी कमर पर लदने वाला है। मैं ने अम्मी से पूछा कि "अम्मी आप ये क्या बना रही हैं?" उन्हों ने कहा कि "बेटा तुम बड़े हो गए हो अब तुम पढ़ने जाया करोगेमैं तुम्हारा बस्ता बना रही हूँ इस में तुम किताबें रखा करोगे" मेरे लिए ये सुनना बहुत अजीब था लेकिन बात ज़्यादा लंबी नहीं की। वह बड़े ध्यान से अपना काम कर रही थीं और बस्ता बन गया।

अम्मी और उस्तानी जी की अगली बैठक मेरे सामने हुई जिसमें उस्तानी जी ने पढ़ने लिखने के लिए ज़रूरी सामान की पर्ची पकड़ा दी। इसी दिन ये सामान पूरा कर के बस्ते में डाल दिया गया जो कभी चीनी की बोरी का हिस्सा रहा था। मेरी पढ़ाई की मीठी मीठी शुरूआत होने जा रही थी।

अगले दिन दोपहर के बाद  अम्मी  ने मुझे तैयार किया और साथ लेकर उस्तानी साहिबा के घर की तरफ़। उस्तानी साहिबा और हमारे घर के दरमयान सिर्फ एक घर का फ़ासिला था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे आज ये कुछ ज़्यादा ही लग  रहा था। इस से आगे का सफ़र में कई बार कर चुका था लेकिन आज कुछ अजीब बात थी। उस्तानी साहिबा के घर का पर्दा हटा कर अंदर दाख़िल हुए अंदर कुछ बच्चे टाट पर बैठे  देखने में पाठ  कर रहे थे  लेकिन वास्तव में वो बीते समय को याद कर रहे थे। अब में भी इस नमक की खदान में गिरने को तैयार था।

मेरे बचपन की ठोस यादों में उस्तानी साहिबा के घर का दृश् आज भी इस तरह मेरे सामने  है जैसे आपके सामने ये अक्षर हैं।

उस्तानी साहिबा ने हमारा स्वागत बड़े अच्छे  तरीक़े से करते हुए हम दोनों को अपने पास टाट पर बिठा लिया। हालचाल के बाद दोनों में मेरी अच्छी बुरी आदतों पर बात हुई।  उस के बाद वर्तमान सतिथी पर बात हुई  जिस  का अंत नहीं हो पा रहा था। अचानक उस्तानी साहिबा ने कहा दीदी ज़रा बैठो मैं हांडिया देख लूं।" इस काम के बाद फ़ीस का लेन-देन हुआ। इन बातों के बीच उस्तानी साहिबा दूसरे बच्चों को पाठ भी याद करवा रही थीं और  उन पर अपना हाथ भी साफ़ कर रही थीं। जो बच्चे ज़रा कमज़ोरी दिखाते उन्हें लाठी के सहारे पाठ याद करवा रही थीं। एक ज़रूरी बात जो बताई गई वो ये थी कि दूसरे बच्चों की तरह मुझे भी अपना टाट साथ लाना होगा, सुबह सात बजे आना है दस बजे छुट्टी और दुबारा दोपहर तीन बजे आना है पाँच बजे छुट्टी होगी। ज़रूरी बातों के बाद इस बैठक का अंत हो गया। इस दिन बिना पढ़ाई के में अम्मी के साथ घर लौट आया।

अगले दिन  सुबह सात बजे से बहुत पहले मुझे जगा दिया गया जो कि आज से पहले कभी नहीं हुआ था। मैं कल की सारी बात भूल चुका था।  मुझे अच्छे से याद दिलाया गया कि मुझे पढ़ने जाना है। नाशता किया, कपड़े बदले, बस्ता कमर पर लादा,  चीनी की बोरी का बाक़ी हिस्सा टाट की शक्ल में मेरे हाथ में था। इस दिन अम्मी मुझे उस्तानी साहिबा के दरवाज़े तक छोड़कर लौट गईं।

अपनी पहली पाठशाला का दृश् में पहले ही  देख चुका था। लेकिन वह तो दोपहर के बाद का समय था। सुबह के समय पढ़ाई के इलावा "सिपारा" भी पढ़ना था जो कि कुछ दिनों के बाद दोपहर वाली पढ़ाई का हिस्सा बनने वाला था। पहले सिपारा पढ़ा गया जो कि  पैकेज का हिस्सा था उस के बाद बाक़ी किताबें पढ़ना थीं।

जारी है।।।।
میری پڑھائی کی شروعات

جب پڑھائی لکھائی شروع نہیں ہوئی تھی  تب بچے سارا دِن کیا کرتے تھے؟  اِس بات کا جواب مجھے تب ہی مِل گیا تھا جب گھر والوں نے مجھے سکول بھیجنے کی تیاری شروع کر دی۔یعنی کھیل کُود کم اور پڑھائی زیادہ۔


 اپنی کہانی شروع کرنے سے پہلے یہ بتا دُوں کہ  مجھ سے پہلےگھر میں سکول جانے والا  آخری بچہ میرے چچا تھے۔ اُن کی پڑھائی میرے سکول جانے سے دس  سال پہلے پوری ہو چُکی تھی۔چچا کی پڑھائی پوری ہونے کے بعد گھرمیں قرآن مجید کے علاوہ پڑھنے کے لیے کوئی کتاب نہیں تھی۔ ہاں اِس کے علاوہ اگر کوئی چیز پڑھی، بلکہ دیکھی جاتی تھی تو وہ بجلی، پانی کے بِل تھے جو برآمدے میں لٹکی تار میں بڑے  سلیقے سے پروے جاتے تھے۔   اِن بِلوں کی تعداد تو معلوم نہیں لیکن وزن  تقریباً دو کلوضرور تھا۔ میرے میٹرک کرنے تک یہ وزن چھ کلو تو رہا ہو گا۔ اِن کی رنگت بھی خُوب تھی تار کے اُوپر والے بِل سفید تھے لیکن نیچے پہنچتے پہنچتے یہ زردی مائل خاکی ہو چُکے تھے۔

جب میں قریب قریب چھ سال کا  تھا۔ گھر میں میرے سکول جانے کے بارے میں باتیں ہونے لگیں۔قریب کے دو تین سکولوں کے بارے میں میری امیّ نے ہماری پڑوسن جو کہ میری پہلی اُستانی بنیں اُن سے بات کی۔ اُنہوں نے کہا کہ " باجی پہلے اِسے پڑھنے کے لیے میرے پاس بھیج دیں تاکہ سکول داخل ہونے تک اِسے کُچھ سمجھ آ جائے۔ اِن دونوں عظیم خواتین  کا یہ اہم اجلاس اِس نکتے پر ختم ہوا کہ مجھے اگلے چند دِن کے بعد باجی کے گھر پڑھنے جانا ہو گا۔ میں اِس اہم پیش رفت سے بالکل بے خبر اپنے ہمجولیوں کے ساتھ اپنی محدود سی دُنیا کی وُسعتوں میں گُم تھا۔  

 ایک دِن میری امیّ   سلائی مشین رکھے ،ہاتھ میں قینچی لیے چینی کی بوری کاٹ رہی تھیں۔مجھے کیا پتا تھا کہ بوری کا ٹکڑا اگلے روز میری کمر پر لدنے والا ہے۔ میں نےامیّ سے  پوچھا کہ  "امیّ آپ یہ کیا بنا رہی ہیں؟" اُنہوں نے کہا کہ "بیٹا تُم بڑے ہو گئے ہو اب تُم پڑھنے جایا کرو گے، میں تمہارا بستہ بنا رہی ہوں اِس میں تُم کتابیں رکھا کرو گے۔" میرے لیے یہ سُننا بہت عجیب تھا لیکن بات زیادہ لمبی نہیں کی۔ وہ بڑے انہماک سے اپنا کام کرتی رہیں اور بستہ بن گیا۔

امیّ اور اُستانی جی کا اگلا اجلاس میری موجودگی میں ہوا جس میں اُستانی جی نے پڑھنے لکھنے کے لیے ضروری سامان کی پرچی پکڑا دی۔ اُسی دِن یہ سامان پورا کر کے بستے میں ڈال دیا گیا جو کبھی چینی کی بوری کا حصّہ رہا تھا۔ میری پڑھائی کی میٹھی میٹھی شروعات ہونے جا رہی تھی۔

اگلے دِن دوپہر کے بعد امیّ نے مجھے تیار کیا اور ساتھ لے کر اُستانی صاحبہ کے گھر کی طرف چل دِیں۔ اُستانی صاحبہ اور ہمارے گھر کے درمیان صرف ایک گھر کا فاصلہ تھا لیکن پتہ نہیں کیوں مجھے آج یہ کچھ زیادہ ہی لگ  رہا تھا۔اِس سے آگے کا سفر میں کئی بار کر چُکا تھا لیکن آج کُچھ عجیب بات تھی۔اُستانی صاحبہ کے گھر کا پردہ ہٹا کر اندر داخل ہوئے اندر چند بچے ٹاٹ پر بیٹھے  بظاہر سبق یاد کر رہے تھے لیکن اصل میں وہ گُزرے وقت کو یاد کر رہے تھے۔ اب میں بھی اِس نمک کی کان میں گِرنے کو تیار تھا۔

میرے بچپن کی پُختہ ترین  یادوں میں اُستانی صاحبہ کے گھر کا منظر آج بھی اِس طرح میرے سامنے  ہے جیسے آپ کے سامنے یہ تحریر۔

اُستانی صاحبہ نے ہمارا استقبال بڑے احسن طریقے سے کرتے ہوئے ہم دونوں کو اپنے پاس ٹاٹ پر بٹھا لیا۔ یاد رہے کہ اب دو خواتین مِل بیٹھی ہیں (یہ دو بھی ہوں تو اِنہیں "خوا 2"نہیں" خوا 3 " ہی پڑھا ، لکھا اور بولا جا تا ہے)۔ حال احوال کے بعد  میری اچھی بُری عادتوں کا ذکر کیا گیا۔  اُس کے بعد حالاتِ حاضرہ پر بات ہوئی  جس  کا اختتام نہیں ہو پا رہا تھا۔ اچانک اُستانی صاحبہ نے کہا "باجی ذرا بیٹھو میں ہانڈی ویکھ لواں"۔  اِس کام کے بعد فیس کا لین دین طے پایا۔اِس بات چیت کے دوران اُستانی صاحبہ دوسرے بچوں کو سبق بھی یاد کروا رہی تھیں اور اپنا دستِ شفقت بھی پھیرتی جا رہی  تھیں۔ جو بچے ذرا کمزوری دِکھاتے اُنہیں لاٹھی کے سہارے سبق یاد کروانے کی سہولت بھی موجود تھی۔ایک اہم بات جو بتائی گئی وہ یہ تھی کہ   باقی بچوں کی طرح مجھے بھی اپنا ٹاٹ ساتھ لانا ہو گا، صبح سات بجے آنا ہے دس بجے چُھٹی  اور دوبارہ دوپہر تین بجے آنا ہے پانچ بجے چُھٹی ہو گی ۔تمام ضروری شفارشات کے ساتھ یہ اجلاس اپنے اختتام کو پہنچا۔ اُس دِن بغیر پڑھائی کے میں امیّ کے ساتھ گھر واپس آگیا۔

اگلے دِن  صبح سات بجے سے بہت پہلے مجھے جگا دیا گیا جو کہ آج سے پہلے کبھی نہیں ہوا تھا۔ میں کل کی ساری کاروائی بُھول چُکا تھا۔ مجھے انتہائی شفقت کے ساتھ یاد کرایا گیا کہ مجھے پڑھنے جانا ہے۔ناشتہ کیا کپڑے بدلے بستہ کمر پر لادا  چینی کی بوری کا بقیہ حصّہ ٹاٹ کی شکل میں میرے ہاتھ میں تھا۔اُس دِن امیّ مجھے اُستانی صاحبہ کے دروازے تک چھوڑ کر واپس آ گئیں۔


اپنی پہلی درس گاہ کا ماحول میں پہلے ہی  دیکھ چُکا تھا ۔لیکن وہ منظر دوپہر کے بعد کا تھا۔ صبح کے  وقت سکول کی پڑھائی کے علاوہ "سپارہ" پڑھنا بھی شامل تھا جو کہ کچھ دِنوں کے بعد  دوپہر والی پڑھائی کا حصّہ بننے والا تھا۔پہلے سپارہ پڑھا گیا  جو کہ  پیکج کا حصّہ تھا اُس کے بعد باقی کتابیں پڑھنا تھیں۔

جاری ہے۔۔۔۔۔

6 comments:

  1. اسلام و علیکم آپکی کہانی بہت عمدہ ہے چینی کی بوری کا پڑھ کر تو اپنابستہ یاد آگیا۔
    بہت عمدہ

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  2. lafzoo kaa intekhab bohat behtreen rahaa...apki baki tehreer kaa intzaar rahay gaa...

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  3. Acha laga parh kar
    Buht daar bd koi story parhi hy
    Waiting for next

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