Friday 24 February 2023

एक पुराना पन्ना । An Old Manuscript । Ein altes Blatt

Franz Kafka An Old Manuscript  Ein altes Blatt

एक पुराना पन्ना । An Old Manuscript 

"Ein altes Blatt"

लेखक: फ्रांज काफ्का । Franz Kafka

लगता है जैसे हमारे देश की रक्षा में बहुत कुछ अनदेखा कर दिया गया था। हम अपने अपने काम पर जाते रहे थे और हमने रक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया था। लेकिन बीते कुछ समय के हालात हमारे लिए चिंता का कारन हैं। मेरी अब शाही महल के सामने चौक में जूते मुरम्मत करने की एक दुकान है।

सवेरे मुँह-अँधेरे जब में अपनी दुकान खौलता हूँतो मुझे उन जगहों पर सशस्त्र लोग क़बज़ा किए दिखाई देते हैंजहां से चूक तक पहुंचने वाली सारी गलियाँ शुरू होती हैं। लेकिन ये हमारे फ़ौजी तो नहीं बल्कि बज़ाहिर उतर से आने वाले बंजारे हैं।

वो एक ऐसे अंदाज़ में राजधानी के अंदर तक घुस आए हैंजो मुझे बिलकुल समझ नहीं आ रहा हैजबकि राजधानी तो सीमा से बहुत दूर है। फिर भी अब तो वो यहां पहुंच चुके हैं और ऐसे लगता है कि जैसे हर नई सुबह इनकी संख्या बढ़ जाती है।

अपने सुभाव के अनुसार उन्हों ने अपने तंबूओ खुले आसमान के नीचे लगा रखे हैंइस लिए कि वो निवासी मकानों को पसंद नहीं करते। वो ख़ुद को अपनी तलवारों को तेज़ करतेतीरों के फल नोकीले बनाते और घुड़सवारी का अभ्यास करते रहने के साथ वयस़्त रखते हैं।

इस बहुत आनंद मई और शांति पूर्वक चौराहे कोजिसे बड़ी फ़िक्रमंदी से बहुत साफ़ रखा जाता थासच्च मुच के एक अस्तबल में बदल दिया गया है। हम कभी कभी अपनी दुकानों से दौड़ कर निकलते और कम से कम वहां हर तरफ़ पाई जाने वाली बहुत ज़्यादा गंदगी को साफ़ करने की कोशिश तो करते हैंलेकिन ऐसा बहुत ही कम होता है और ये प्रयास इस कारन से भी असफल हो जाता है कि हमें घोड़ों के सुमों तले कुचले जाने या सज़ा के तौर पर कोड़े मार मार कर घायल कर दिए जाने का भय भी बना रहता है।

इन ख़ाना-ब-दोशों के साथ कोई बात इस लिए नहीं की जा सकती कि वो हमारी भाषा नहीं जानते और उन की अपनी भाषा तो जैसे कोई है ही नहीं। वो आपस में एक दूसरे की बातों को धुमेली गर्दन वाले छोटे कौवे के से अंदाज़ में समझते हैं। वो जब भी आपस में कोई बात करते हैंतो बार-बार उनकी इन्ही छोटे कव्वों की चीख़ों जैसी आवाज़ें सुनाई देती हैं।

हमारी जीवन शैली और हमारी संस्थाएं उनके लिए इतने ही समझ से बाहर हैंजितना कि वो उनके बारे में लापरवाही भी दिखाते हैं। ईसी नासमझी और लापरवाही के नतीजे में उन के व्यवहार से इशारों की हर किस्म की भाषा के रद्द किए जाने का पता भी चलता है। आप चाहें तो अपनी कोशिश कर के देख लेंइशारों की ज़बान इस्तिमाल करते हुए आपके जबड़े लटक जाऐंगे और कलाइयों के जोड़ जैसे टूटने को होंगेलेकिन ये ख़ाना-ब-दोश ना तो आपकी बात समझते हैं और ना ही कभी समझ पाएँगे।

वो अक्सर बड़ी मज़े-दार शक्लें बनाते हैंजिस बीच उन की आँखों के सफ़ैद हिस्से अजीब तरह से घूमने लगते हैं और उन के मुँह से झाग उबलने लगती है। लेकिन इस तरह वो ना तो कुछ कहना चाहते हैं और ना ही किसी को डराना। वो तो ऐसा केवल इसलिए करते हैं कि ये बस उनका अपना ही विशेष ढंग है।

उन्हें जो कुछ भी चाहिए होता हैवो ले लेते हैं। ये भी नहीं कहा जा सकता कि वो ताक़त या हिंसा का प्रयोग करते हैं। वो जब किसी चीज़ पर हाथ डालते हैंतो इन्सान ख़ुद ही एक तरफ़ को हो जाता है और सब कुछ इन्ही पर छोड़ देता है। मेरे बचाए हुए सामान में से भी वो कई अच्छी चीज़ें ले चुके हैं। लेकिन में इस बारे में कोई शिकायत नहीं कर सकताउदाहरण के तौर पर अगर में ये देखूं कि मेरी दुकान के सामने वाले क़साई की हालत कैसी है।

वो जैसे ही बेचने के लिए मांस अपनी दुकान पर लाता हैये बंजारे सारे का सारा इस से छीन कर शड़प शड़प करते हुए हड़प कर जाते हैं। उनके तो घोड़े भी मांस खाते हैं। अक्सर कोई ना कोई सवार अपने घोड़े के पास ही ज़मीन पर लेटा होता है और दोनों अपने अपने आगे से लेकिन मांस के एक ही बड़े टुकड़े से पीट भर रहे होते हैं।

क़साई डरा हुआ रहता है और ये सोचने की तो इस की हिम्मत ही नहीं पड़ती कि वो अपनी दुकान के लिए मांस की आपूर्ति रुकवा दे। लेकिन हम इस बात को समझते हैं और रक़म जमा कर के इस की मदद करते हैं। कौन जानता है कि अगर बंजारों को खाने के लिए मांस ना मिला तो वो क्या कर गुज़रीं। मगर ये भी कौन जानता है कि जब उन को हर मिलता रहेतो फिर भी वो कब क्या कर गुज़रने की ठान लें।

फिर आख़िर-ए-कार क़साई ने ये सोचा कि वो कम से कम अपनी वो मेहनत तो बचा ही सकता हैजो वो मांस के लिए जानवर काटने करने के लिए करता है। अगली सुबह वो अपने साथ एक ज़िंदा बैल ले आया। लेकिन उसे कभी भी दुबारा ऐसा करने की हिम्मत नहीं करना चाहिए। मैं अपनी दुकान में बिलकुल पीछे जा कर पूरे एक घंटे तक ज़मीन पर चित्त लेटा रहा था और मैंने वहां रखे हुए अपने सभी कपड़ेकम्बल और गद्य वग़ैरा अपने ऊपर एक ढेर की शक्ल में जमा कर लिए थे।

मैं केवल इस बेल के बहुत तकलीफ़ से बहुत ऊंची आवाज़ में डकराने को सुनने से बचनाचाहता था। बंजारे तो हर तरफ़ से इस पर चढ़ दौड़े थे और अपने दाँतों से इस के ज़िंदा शरीर से गर्म मांस के टुकड़े उधेड़ते जाते थे। फिर काफ़ी देर तक ख़ामोशी छाए रहने के बाद मैंने उठ कर बाहर निकलने की हिम्मत की। बंजारे उस बेल के बच्चे खिचे कंकाल के आस-पास थके हुए ऐसे लेटे पड़े थे जैसे बहुत से शराबी वाइन के किसी बैरल के चारों ओर।

इसी पल मुझे ऐसे लगा कि मैंने ख़ुद बादशाह को महल की एक खिड़की के सामने खड़े हुए देखा है। बादशाह तो सदा ही कील महल के सबसे भीतरी बाग़ीचे में रहता था और यूं महल के सबसे बाहर वाले भाग में तो वो कभी आता ही नहीं था। इस बार लेकिन बादशाह एक खिड़की के सामने खड़ा थाया कम से कम मुझे ऐसा ही लगाऔर सर झुकाए ये देख रहा था कि इस के महल के सामने क्या कुछ हो रहा है।

अब क्या होगा हम सब ही ये पूछते हैं,हम ये बोझ और पीड़ा कब तक सहन करेंगे। राजमहल के आकर्षण के कारन ये बंजारे यहां तक आ तो गए हैंलेकिन महल और इस के रहने वाले ये समझने से असमर्थ हैं कि इन बंजारों को यहां से निकाला कैसे जायेमहल का दरवाज़ा बंद रहता है और वो पहरेदारजो अपने कर्तवय के लिए पहले सदा एक नययमित ढंग से आते-जाते थेअब महल के अंदर बाड़ लगी खिड़कियों के पीछे ही रहते हैं।

देश को बचाने का काम हम हसत कलाकारों और व्यापारी लोगों के कंधों पर आन पड़ा है। लेकिन हमें तो ऐसे किसी काम का कोई तजुर्बा ही नहीं है। हमारी तो ऐसी कोई प्रसिद्धि भी नहीं है कि हम इस कर्तवय की पूओरती के लिए सक्षम हैं। ये एक नासमझी है और इस बीच हम बर्बाद हो जाऐंगे।

٭٭٭ 

(काफ्का के इस दृष्टांत का अंग्रेज़ी में अनुवाद “An Old Manuscript” के टाइटल के साथ भी हुआ हैजिस कारन इस लेख के कुछ उर्दू अनुवाद "एक पुराना मुसव्वदा" का शीर्षक भी दिया गया था। लेकिन ख़ुद काफ्का ने इसे जर्मन में जो शीर्षक दियाउस के अनुसार उर्दू शीर्षक "एक पुराना पन्ना" ही बनता है। मक़बूल मलिक )

जर्मन से उर्दू अनूवाद मक़बूल मलिक साहिब और उर्दू से हिन्दी अनूवाद मुहम्मद ज़ुबैर 

No comments:

Post a Comment