Tuesday 21 July 2020

मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | میری پڑھائی کی شروعات 3


 मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | میری پڑھائی کی شروعات 3

दीदी के पास पढ़ने जाते हुए मुझे तीन महीने हो चुके थे। इस बीच में उर्दू, अंग्रेज़ी और गणित की पहली किताबें पढ़ चुका था। लिखाई भी अच्छी हो चुकी थे। एक दिन शाम की पढ़ाई के बाद दीदी ने कहा कि सवेरे अम्मी को साथ लेकर आऊँ। ये संदेश मैंने घर जा कर अम्मी को पहुंचा दिया। अगले दिन अम्मी ने दीदी से मुलाक़ात की जिसमें उन्होंने कहा कि दीदी अब इस लड़के को स्कूल में भर्ती करवा दें। पास के दो तीन प्राईवेट स्कूल्ज़ पर बात हुई। दीदी ने कहा आप इसे सरकारी स्कूल में भर्ती करवा दें। अम्मी ने घर आकर इस विषय पर बात की और तै पाया कि इसे सरकारी स्कूल में ही भेज दिया जाये। अगले दिन मुझे सरकारी स्कूल ले जाया गया जो कि घर से आधा किलो मीटर की दूरी पर था।
दुनिया मेरे लिए अब बड़ी हो गई थी। हम सुबह सात बजे चचा के साथ  स्कूल जाने के लिए घर से निकले। घर से स्कूल जाते हुए बहुत सी नई चीज़ें देखने को मिलीं। रास्ते में कई दुकानें देखें। लक्कड़ी के आरे पर मेरी नज़रें टिक गईं। दो लड़के आरे पर काम कर रहे थे। आरे के चलने की आवाज़ मुझे बहुत अच्छी लगी। पास ही एक बूढ़ा आदमी लट्टू बना रहा था। मैं कुछ देर यहां रुकना चाहता था। मैंने अपनी गती कम की लेकिन कर नहीं सका। वो महान आत्मा जिसके हाथ में मेरी कलाई थी उसने मेरा इरादा जानते हुए मुझे सीधा चलने के लिए कहा और स्कूल के दरवाज़े पर पहुंच कर ही दम लिया।

ये एक प्राइमरी स्कूल था जिसके छः कमरे थे जिनमें से एक हेडमास्टर साहिब और दूसरे टीचरज़ बैठते थे। बाक़ी कमरों में पढ़ाई होती थी। सेहन में पीपल के तीन चार बड़े बड़े पेड़ थे। बच्चे इन पेड़ों के नीचे ज़मीन पर टाट बिछाए ज्ञान की जूती जलाए बैठे थे। हेडमास्टर साहिब के साथ बात शुरू हुई। हेडमास्टर मेरे चचा के जानने वाले थे। उनका घर हमारी गली से चौथी गली में था। उनकी पान की दुकान भी थी जो वो स्कूल के बाद खोला करते थे। उन्हों ने मुझसे मेरा नाम पूछा जो कि मुझे ज़बानी याद था लेकिन में उन्हें बता नहीं सका। इस के बाद उन्होंने मुझे से कुछ पूछने की कोशिश नहीं की। उन्होंने पहली जमात के रजिस्टर में मेरा नाम लिखा और चचा को किताबों के बारे में बताया। अगले दिन से मुझे स्कूल आना था। हम स्कूल से वापिस घर को चल पड़े। रास्ते में मेरी नज़र फिर लट्टू बनाने वाले बूढ़े पर रुकी। गती कम हुई, कलाई खींची गई और सीधा चलने का कहा गया।

दोपहर को मैं दीदी की तरफ़ पढ़ने चला गया। उन्हों ने मुझसे स्कूल के बारे में पूछा। मैंने सारी बात उन्हें बता दी । दूसरे बच्चों को भी मैंने स्कूल के बारे में बताया। वो भी अपने अपने स्कूल के बारे में मुझे बताने लगे। उनमें से कोई बच्चा इस स्कूल में नहीं पढ़ता था जहां मुझे भर्ती किया गया था। मेरी गली के दोस्तों में से भी कोई इस स्कूल में भर्ती नहीं था। यहां से छुट्टी के बाद में घर को चल दिया। मुझे अब अगली सुबह पढ़ने के लिए दीदी की तरफ़ आने की बजाय स्कूल जाना था।

 मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | میری پڑھائی کی شروعات 3


सुबह मुझे स्कूल भेजने की तैयारी होने लगी। अभी यूनीफार्म नहीं आया था इसलिए सिविल कपड़ों में ही स्कूल जाना था। चचा मुझे स्कूल छोड़ने आए। उन्हों ने मास्टर साहिब को बताया कि यूनीफार्म एक दो दिन में आ जाएगा। मास्टर साहिब ने मुझे दूसरे बच्चों के साथ बिठा दिया। पढ़ाई शुरू हुई। मेरे लिए ये नया तजुर्बा था कि क्लास के सभी बच्चों को एक ही बार में सबक़ दिया जाता है और सबक़ चाक से श्यामपट पर लिखा जाता है। तख़्ती लिखना यहां भी लाज़िमी था। बहुत सी तबदीलीयों के साथ एक बड़ी तबदीली ये थी कि यहां पर सारे पुरुश टीचर थे। उनका स्वभाओ और पढ़ाने का तरीक़ा दीदी जैसा नहीं था। इस का अनुमान मुझे पांचवीं कक्षा के बच्चों को मुर्ग़ा बन कर मार खाते देखकर हुआ

मैंने सोचा कि आज ये सब उनके साथ हो रहा जब मैं पांचवें कक्षा में जाऊँगा मेरे साथ भी ऐसा ही होगा। ये मेरी कच्ची सोच थी। मुझे इस बात का अनुमान नहीं था कि पहली कक्षा के छात्रों को भी समय अनुसार ये सुविधा दी जाती है। तीसरे दिन हमारी कक्षा के एक बच्चे को मास्टर साहिब ने छड़ी से मारा। मेरे लिए ये बात स्कूल छोड़ने के लिए मील का पत्थर बन गई। मैंने घर आकर सारी बात बता दी और ऐलान कर दिया कि में इस स्कूल नहीं जाऊँगा। यहां बच्चों को मारा जाता है।

जारी है ।।।

میری پڑھائی کی شروعات – 3

باجی کی طرف پڑھنے جاتے ہوئے مجھے تقریباً تین ماہ ہو چکے تھے۔ اس دوران میں اردو، انگریزی اور حساب کے ابتدائی قاعدے پڑھ چکا تھا۔ لکھائی کی مشق بھی بہتر ہو چکی تھے۔ ایک دن شام کی پڑھائی کے بعد باجی نے کہا کہ صبح امی کو ساتھ لے کر آؤں۔ یہ پیغام میں نے گھر جا کر امی کو پہنچا دیا۔ اگلے دن امی نے باجی سے ملاقات کی جس میں انہوں نے کہا کہ باجی اب اس لڑکے کو سکول داخل کروا دیں۔ پاس کے دو تین پرائیویٹ سکولز پر بات ہوئی۔ باجی نے کہا آپ اسے سرکاری سکول میں داخل کروا دیں۔ امی نے گھر آ کر اس موضوع پر بات کی اور طے پایا کہ اسے سرکاری سکول میں ہی بھیج دیا جائے۔ اگلے دن مجے سرکاری سکول لے جایا گیا جو کہ گھر سے آدھا کلو میٹر کی مسافت پر تھا۔

دنیا میرے لیے اب بڑی ہو گئی تھی۔ ہم صبح سات بجے چچا کے ساتھ سکول جانے کے لیے گھر سے نکلے۔ گھر سے سکول جاتے ہوئے بہت سی نئی چیزیں دیکھنے کو ملیں۔ راستے میں مختلف چیزوں کی دکانیں دیکھیں۔ لکڑی کا آرا میری توجہ کا مرکز رہا۔ دو لڑکے آرے پر کا م کر رہے تھے۔ آرے کے چلنے کی آواز مجھے بہت اچھی لگی۔ پاس ہی ایک بزرگ لٹو بنا رہے تھے۔ میں کچھ دیر یہاں رکنا چاہتا تھا۔ میں نے اپنی رفتار کم کی لیکن کر نہیں سکا۔ وہ ہستی جس کے ہاتھ میں میری کلائی تھی اُس نے میرا ارادہ بھانپتے ہوئے مجھے سیدھا چلنے کے لیے کہا اور سکول کے دروازے پر پہنچ کر ہی دم لیا۔

 मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | میری پڑھائی کی شروعات 3

 یہ ایک پرائمری سکول تھا جس کے چھ کمرے تھے جن میں سے ایک ہیڈ ماسٹر صاحب اور دوسرے اساتذہ بیٹھتے تھے باقی کمروں پڑھائی ہوتی تھی۔۔ صحن میں پیپل کے تین چار بڑے بڑے درخت تھے۔ بچے ان درختوں کے نیچے زمین پر ٹاٹ بچھائے علم کی شمیں جلائے بیٹھے تھے۔ ہیڈ ماسٹر صاحب کے ساتھ بات شروع ہوئی۔ یہ میرے چچا کے جاننے والے تھے۔ ان کا گھر ہماری گلی سے چوتھی گلی میں تھا۔ اِن کی پان کی دکان بھی تھی جو وہ سکول کے بعد کھولا کرتے تھے۔ اُنہوں نے مجھ سے میرا نام پوچھا جو کہ مجھے زبانی یاد تھا لیکن میں اُنہیں بتا نہیں سکا۔ اس کے بعد انہوں نے مجھے سے کچھ پوچھنے کی ضرورت محسوس نہیں کی۔ ہیڈ ماسٹر صاحب نے پہلی جماعت کے رجسٹر میں میرا نام لکھا اور چچا کو کتابوں کے بارے میں بتایا۔ اگلے دن سے مجھے سکول آنا تھا۔ ہم سکول سے واپس گھر کی چل پڑے۔ راستے میں میری نظر پھر لٹو بنانے والے بزرگ پر رکی۔ رفتار کم ہوئی، کلائی کھینچی گئی اور سیدھا چلنے کا کہا گیا۔

دوپہر کو میں باجی کی طرف پڑھنے چلا گیا۔ اُنہوں نے مجھ سے سکول کے بارے میں پوچھا۔ میں نے تمام باتیں اُن کے گوش گزار کیں۔ دوسرے بچوں کو بھی میں نے سکول کے بارے میں بتایا۔ وہ بھی اپنے اپنے سکول کے بارے میں مجھے بتانے لگے۔ ان میں سے کوئی بچہ اس سکول میں نہیں پڑھتا تھا جہاں مجھے داخل کرایا گیا تھا۔ میری گلی کے دوستوں میں سے بھی کوئی اس سکول میں داخل نہیں تھا۔ یہاں سے چھٹی کے بعد میں گھر کو چل دیا۔ مجھے اب اگلی صبح پڑھنے کے لیے باجی کی طرف آنے کی بجائے سکول جانا تھا۔

 मेरी पढ़ाई की शुरूआत | Meri Padhai Ki Shuruat | میری پڑھائی کی شروعات 3

صبح مجھے سکول بھیجنے کی تیاری ہونے لگی۔ ابھی یونیفارم نہیں آیا تھا اس لیے سِول کپڑوں میں ہی سکول جانا تھا۔ چچا مجھے سکول چھوڑنے آئے۔ اُنہوں نے ماسٹر صاحب کو بتایا کہ یونیفارم ایک دو دن میں آ جائے گا۔ ماسٹر صاحب نے مجھے دوسرے بچوں کے ساتھ بٹھا دیا۔ پڑھائی شروع ہوئی۔ میرے لیے یہ نیا تجربہ تھا کہ کلاس کے سبھی بچوں کو ایک ہی دفعہ سبق دیا جاتا ہے اور سبق چاک سے تختہ سیاہ پر لکھا جاتا ہے۔ تختی لکھنا یہاں بھی لازمی تھا۔ بہت سی تبدیلیوں کے ساتھ ایک اہم تبدیلی یہ تھی کہ یہاں پر سارے مرد استاد تھے۔ ان کا رویہ اور پڑھانے کا انداز باجی سے تو بالکل مختلف تھا۔ اس کا اندازہ مجھے پانچوین جماعت کے بچوں کو مرغا بن کر مار کھاتے دیکھ کر ہوا۔ میں نے سوچا کہ آج یہ سب ان کے ساتھ ہو رہا جب میں پانچویں جماعت میں جاؤں گا میرے ساتھ بھی ایسا ہی ہو گا۔ یہ میری خام خیالی تھی۔ میرے وہم و گمان میں بھی نہیں تھا کہ پہلی جماعت کے طلباء کو بھی بوقتِ ضرورت یہ سہولت دی جاتی ہے۔ تیسرے دن ہماری جماعت کے ایک بچے کو ماسٹر صاحب نے چھڑی سے مارا۔ میرے لیے یہ واقع سکول چھوڑنے کے حوالے سے سنگِ میل ثابت ہوا۔ میں نے گھر آ کر سارا واقع بتایا اور اعلان کر دیا کہ میں اس سکول نہیں جاؤں گا۔ یہاں بچوں کو مارا جاتا ہے۔

جاری ہے ۔۔۔۔


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