Thursday 9 July 2020

ज़माना आया है बे-हजाबी का, आम दीदार-ए-यार होगा --- डॉक्टर अल्लामा मुहम्मद इकबाल | Dr. Allam Muhammad Iqbal

Allam Iqbal Hinid
Dr. Allama Muhammad Iqbal


ज़माना आया है बे हजाबी का, आम दीदार ए यार होगा
सकूत था परदादार जिस का वो राज़ अब आशकार होगा

गुज़र गया है अब वो दौर साकी कि छुप छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहां मयख़ाना हर कोयी बादाख़वार होगा

कभी जो आवारा ए जुनूं थे वो बसत्यों में फिर आ बसेंगे
बरहनापायी वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ाड़ होगा

सुना दीया गोश ए मुंतज़िर को हिजाज़ की ख़ामोशी ने आख़िर
जो अहद सहराईयों से बांधा गया था फिर उसतवार होगा

निकल के सहरा से जिसने रूमा की सलतनत को उलट दीया था
सुना है येह कुदस्यों से मैंने वो शेर फिर होशियार होगा

कीया मेरा तज़किरा जो साकी ने बादाख़वारों की अंजुमन में
तो पीर ए मैख़ाना सुन के कहने लगा कि मूंह फट है ख़वार होगा

दयार-ए-मग़रिब के रहने वालो, ख़ुदा की बसती दुकां नहीं है
खरा जिसे तुम समझ रहे हो वो अब ज़र-ए-कम अय्यार होगा

तुमहारी तहज़ीब अपने ख़ंज़र से आप ही खुदकशी करेगी
जो शाख़-ए-नाज़ुक पे आशीयाना बनेगा ना-पायेदार होगा

चमन में लाला दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली कली को
येह जानता है इस दिखावे से दिलजलों में शुमार होगा

जो एक था ऐ निगाह तूने हज़ार करके हमें दिखाया
यही अगर कैफ़ीयत है तेरी तो फिर किसे ऐतबार होगा

ख़ुदा के आशिक तो हैं हज़ारों बनों में फिरते हैं मारे मारे
मैं उसका बन्दा बनूंगा जिस को ख़ुदा के बन्दों से पयार होगा

येह रसम ए बज़म ए फ़ना है ऐ दिल गुनाह है जुम्बिश ए नज़र भी
रहेगी कया आबरू हमारी जो तू यहां बेकरार होगा

मैं ज़ुलमत-ए-शब में ले के निकलूंगा अपने दरमांदा कारवां को
शरर फ़िसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोलाबार होगा

ना पूछ इकबाल का ठिकाना अभी वही कैफ़ीयत है उसकी
कहीं सर-ए-राह गुज़ार बैठा सितम कश ए इंतेज़ार होगा

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